कुम्हीचुआं पंचायत के बिरहोर जनजाति का प्रधानमंत्री आवास एक साल में ही टुट फुट रहा है।

पंचायत में बनने वाले जो भी प्रधानमंत्री आवास ठेकेदार या पंचायत द्वारा बनाया गया है वह सभी मकान एक बरसात भी नहीं काट पा रहा है। मकानों की स्थिति ऐसा है कि मानो बकरी कोठार बना दिया गया हो।हालत कुछ ऐसा है कि बरसात में लोग घर में रहने से डर रहे हैं।छत फुट गया है पानी भी टपक रहा है दिवारें फट कर फैल गया है।
ऐसा ही एक वाक्या ग्राम पंचायत कुम्हीचुआं पंचायत में निवासरत बिरहोर जनजाति के बस्ती का है इस पंचायत में निवासरत बिरहोर जनजाति पहाड़ी में निवास करते हैं मगर प्रशासन ने इनकी जिवन स्तर में सुधार के लिए इन जनजातियों को पहाड़ी से नीचे लाकर एक बस्ती बना कर बसाने का प्रयास किया है। मगर इनके सरपर जो छत शाशन के द्वारा उपलब्ध कराई जा रही है। सरपंच की उदासीनता एवं लाभकारी इरादा ने इन जनजातियों को खुन के आंसु रुला रहा है भरी बरसात में इनके छत टुट रहे है दिवारें फट गया है घर के अंदर रत्ती भर भी जगह नहीं है जहां लोग बैठ सके।सोना तो नामुमकिन है।
सवाल यह है कि सरपंच ऐसे ठेकेदार से काम क्यों ले रहा है क्या गुणवत्ता युक्त कार्य करना सरपंच कि जिम्मेदारी नहीं है। कहीं कमीशनखोरी इन स्तरहीन कार्यों का कारण तो नहीं।
कौन करता है ऐसे कार्यो का मुल्याकन कौन करता है जियोटेग क्या ये सभी पदाधिकारी सिधे तौर से इन स्तरहीन कार्यों के लिए जिम्मेदार नहीं हैॽ