पुरूगां भूमिगत कोयला खदान से खेती किसानी को नुकसान की संभावना कम।

पुरुगां में प्रस्तावित भूमिगत खनन खनन की एक ऐसी विधि है जिसमें ऊपरी मिट्टी और चट्टानों को हटाए बिना खनिज निकाला जाएगा। इससे जंगल, कृषि भूमि, नदियों और आवासीय क्षेत्रों जैसी सतही विशेषताओं को नुकसान नहीं पहुंचता है।

पुरुंगा भूमिगत कोयला खदान: पर्यावरण और जनहित की सुरक्षा के लिहाज सर्वोहित एवं उचित है छत्तीसगढ़ के रायगढ़ ज़िले के पुरुंगा, कोकदर और समरसिंहा गांवों में प्रस्तावित 2.25 मिलियन टन प्रति वर्ष (MTPA) क्षमता की भूमिगत कोयला खदान परियोजना को लेकर हाल ही में कुछ भ्रांतियाँ और गलतफहमियाँ सामने आई हैं। इस संदर्भ में परियोजना से जुड़े अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि यह परियोजना पर्यावरण संरक्षण, स्थानीय समुदाय के कल्याण और सतत विकास के सिद्धांतों पर आधारित है।परियोजना के अधिकारी ने कहा की पुरुंगा भूमिगत परियोजना के विरुद्ध गलत भ्रांतियां प्रचारित की जा रही है तथा विस्थापन और जंगलों के दोहन किए जाने के संबंध में दुष्प्रचार किया जा रहा है।भूमिगत परियोजना की स्थापना में न ही गांव का विस्थापन होगा तथा न ही जंगल काटने की आवश्यकता होगी। यह पूर्णतः भूमिगत खदान परियोजना होगी।परियोजना के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, जल आपूर्ति और अन्य बुनियादी सुविधाओं के विकास में भी योगदान दिया जाएगा। भारत सरकार के नीति आयोग के अनुसार, वर्ष 2030 तक देश में कोयले की मांग 1192 से 1325 मिलियन टन तक पहुँचने की संभावना है। ऐसे में यह परियोजना देश की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में अहम भूमिका निभाएगी।यह परियोजना न केवल क्षेत्रीय विकास को गति देगी, बल्कि पर्यावरणीय और सामाजिक उत्तरदायित्वों का भी पूर्ण पालन करेगी। वही इस खदान को विरोध का हवा देकर कुछ लोग अपना हित साधने में लगे हुए है यह विरोध निरर्थक एवं स्वसार्थक नजर आ रही है।