डी बी एल धनवादा की भुख धरमजयगढ़ क्षेत्र में निग़ल रहा है जंगल, संस्कृति और जीवन! कॉर्पोरेट लूट से न जंगल बचे, न जीव-जंतु, अब छीनी जा रही है आदिवासियों की ज़मीन, अस्मिता और भविष्य

धरमजयगढ़ के आदिवासी अंचलों में पत्थर, कोयला, के खनन ने अब सिर्फ जंगलों को ही नहीं निगल रहा है इस तथाकथित ‘विकास’ की भूख ने अब समुदायों की जड़ें, संस्कृति, आजीविका और जैव विविधता को भी निगलना शुरू कर दिया है। धरमजयगढ़ जैसे इलाके अब केवल खनिज संसाधनों के नक्शे नहीं, बल्कि आदिवासी अस्तित्व की रेखाएं हैं जिन्हें DBL, ,अडानी धनवादा जैसी कंपनियां मिटाने पर तुली हैं।‘EIA’ रिपोर्ट नहीं, ये तो ‘कॉर्पोरेट माफीनामा’ है : पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) अब एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि कंपनियों के लिए ‘क्लीन चिट’ दिलाने वाला दस्तावेज़ बन गया है। इन रिपोर्टों में न जंगलों की सही तस्वीर पेश की जाती है, न वन्यजीवों की वास्तविक उपस्थिति का ज़िक्र होता है। ‘जनसुनवाई’ का नाम लेकर ट्रकों में भरकर लाई गई भीड़ से ‘सहमति’ हासिल की जाती है, जैसे पिछले दिनों लक्ष्मी पुर के जन सुनवाई में देखा गया इसमें प्रभावित समुदायों को या तो बुलाया ही नहीं जाता, या फिर उनकी आवाज़ दबा दी जाती है।
क्या केवल पेड़ों की गिनती ही पर्यावरण है? :
बड़ा सवाल यह है –क्या विकास का अर्थ सिर्फ पेड़ काटने और खदानें खोदने तक सीमित है?क्या आदिवासी समाज की आजीविका, उनकी सांस्कृतिक परंपराएं, पवित्र स्थल, जलस्रोत और जैव विविधता कोई मायने नहीं रखते?क्यों नहीं की जाती Social Impact Assessment, Livelihood Impact Assessment और Biodiversity Assessment?अब समय आ गया है कि इन पहलुओं को कानूनी रूप से अनिवार्य बनाया जाए और हर परियोजना से पहले सार्थक जन-सुनवाई सुनिश्चित की जाए, जिसमें प्रभावित लोग खुलकर बोल सकें, सवाल पूछ सकें और सहमति-असहमति दर्ज करा सकें।
सरकारी संस्थाएं बनीं कॉर्पोरेट एजेंट :
पर्यावरण मंत्रालय से लेकर वन विभाग और जिला प्रशासन तक सब कॉर्पोरेट्स के इशारे पर काम कर रहे हैं। मंजूरी की प्रक्रिया में RTI डालने पर अधूरे या गुमराह करने वाले जवाब मिलते हैं। जिन परियोजनाओं पर जन असहमति है, उन्हें भी जबरन मंजूरी दी जा रही है। आंदोलनकारियों को ‘विकास-विरोधी’ घोषित कर उनके खिलाफ दमनात्मक कार्यवाही की जा रही है।
अब समाज देगा जवाब :
अब आदिवासी समुदाय, जनसंगठन, किसान और पर्यावरण प्रेमी एकजुट होकर सरकार और कंपनियों को खुला संदेश दे रहे हैं :बिना हमारी सहमति कोई परियोजना नहीं!हमारी ज़मीन, हमारा जंगल, हमारी संस्कृति – अब और लूट नहीं!
जनसुनवाई होगी, तो खुले मंच पर और सच के साथ होगी!यह अंत नहीं, संघर्ष की शुरुआत है : DBL हो या Adani, Vedanta हो या Jindal या धनवादा अब कंपनियों की ‘EIA-जुगाड़’ संस्कृति को जनता बेनकाब करेगी। रायगढ़ से उठी यह आवाज़ अब पूरे देश में गूंजेगी। जहां-जहां प्रकृति और समाज को रौंदने की कोशिश होगी, वहां-वहां जनआंदोलन खड़ा होगा।
अब जनता पूछेगी ‘विकास नीति’ में ‘जन’ कहां है?