वन अधिकार घोटाला: प्रशासन की मिलीभगत से जंगल की खुली लूट, असली हकदारों को छलने की साजिश।

धरमजयगढ़ वन मंडल में वन अधिकार पत्र वितरण में बड़े पैमाने फर्ज़ी वन अधिकार पट्टा वितरण होने की आशंका है । इस पूरे मामले में प्रशासन की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि सरकारी अधिकारियों, दलालों और प्रभावशाली रसूखदारों की मिलीभगत से असली हकदारों को उनके अधिकार से वंचित कर दिया गया, जबकि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर वन भूमि पर कब्जा दिलाया गया।
मामला धरमजयगढ़ के क्रोँधा, सेमीपाली ग्राम का है
, एक ग्रामीण ने नाम न छापने की शर्त पर प्रशासन और रसूखदार लोगों की मिली भगत से वन भूमि का बन्दर बाँट लिये जाने का आरोप लगाया है , जिसकी उच्च स्तरीय जांच के के लिये जल्द ही प्रक्रिया की जायेगी, केंद्रीय स्तर पर जांच के बाद दूध का दूध और पानी का पानी होने की उम्मीद है !”सत्ता-प्रशासन की मिलीभगत से जंगल पर डाका!”विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, कुछ प्रभावशाली परिवारों ने प्रशासन की सांठगांठ से अपने कई रिश्तेदारों के नाम पर वन अधिकार पत्र हासिल कर लिए। वन विभाग के अधिकारियों ने नियमों को ताक पर रखकर रसूखदारों को फायदा पहुंचाया, जबकि असली जरूरतमंद गरीब और आदिवासी परिवार दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।प्रशासन और दलालों का खेल: किसने किया फायदा?बिना जांच-पड़ताल रसूखदारों को पट्टे बांटे गए। फर्जी दावों को वैध ठहराने के लिए दस्तावेजों से छेड़छाड़ की गई।हकदारों को जानबूझकर लटकाया गया, ताकि वे रिश्वत देने को मजबूर हों।वन विभाग के अधिकारी जानबूझकर चुप रहे और घोटाले को हवा दी। क्या होगी कार्रवाई?अब बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार और प्रशासन इस घोटाले को उजागर कर दोषियों पर कार्रवाई करेगा, या फिर मिलीभगत से इस भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने की कोशिश की जाएगी? अगर जल्द निष्पक्ष जांच नहीं हुई, तो जनता का गुस्सा किसी बड़े जनआंदोलन में बदल सकता है!