धरमजयगढ़ के विकास का पैसा आखिर किसके जेब में जा रहा है।
। स्वतंत्र भारत के 1956 में मध्यप्रदेश राज्य बना और विकास से कोसों दूर होने के कारण अटल बिहारी वाजपेई ने 2000 में छत्तीसगढ़ को स्वतंत्र राज्य बना दिया ताकि छत्तीसगढ़ के लोगों का सर्वांगीण विकास हो सके वहीं 1956 में धरमजयगढ़ अनुविभाग बना धरमजयगढ़ अनुविभाग से पृथक होकर पत्थलगांव,लैलूंगा,घरघोड़ा और खरसिया अनुविभाग बना परन्तु पुराना अनुविभाग आज भी विकास के लिए आंसू बहा रहा है.धरमजयगढ़ से अलग होकर जितने भी अनुविभाग बने आज विकास के चरमोत्कर्ष पर हैं और धरमजयगढ़ अनुविभाग का विकास ना होना क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों की इच्छाशक्ति को दर्शाता है।धरमजयगढ़ ब्लाक आज सड़क,शिक्षा, स्वास्थ जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रहा है,किसी क्षेत्र का विकास वहां के लिए बने आवागमन की सड़क,शिक्षा का स्तर और स्वास्थ से जुड़ी सुविधाओं को देखकर अनुमान लगाया जाता है लेकिन यहां देखा जाय तो 70 वर्षों में धरमजयगढ़ खरसिया मुख्य मार्ग आज तक नहीं बन पाया,सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र डॉक्टरों और स्टॉप की कमी से जूझ रहा है.रही बात शिक्षा की तो आज के समय में शैक्षिक पाठ्यक्रम नहीं है और पुराना अनुविभाग होने के कारण सरकारी कॉलेज में पीजी का पाठ्यक्रम नहीं है.जिससे क्षेत्र के बच्चों को बाहर जाकर अध्ययन करना पड़ रहा है।सरकार योजनाएं पूरे प्रदेश के लिए बनाती है लेकिन धामजयगढ़ से अलग हुए पड़ोसी अनुविभाग को देख जाय तो यहां की तुलना में बहुत अधिक विकास हुआ है.सरकार की योजनाओं को क्षेत्र के जनप्रतिनिधि जागरूक होकर करवाते हैं ऐसे में धरमजयगढ़ क्षेत्र की जनता को मूलभूत सुविधा उपलब्ध करवाना किसकी जिम्मेदारी है इस बात को जनप्रतिनिधि आज तक नहीं समझ पाए.जनप्रतिनिधि चाहे किसी दल का भी क्यों न हो जनता के प्रति ध्यान नहीं देना वाकई में इनकी निष्क्रियता और मतलबीपन को साफ साफ दर्शाता है.यहां यह बताना जरूरी है कि किसी भी दल के नेता ” छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया ” की बात करके क्षेत्र की जनता को झूठा आश्वाशन देकर पद,प्रतिष्ठा और सम्मान अर्जित कर रहे हैं….आखिर कब जागेंगे क्षेत्र की जनता..क्षेत्र की जनता कब सबक सिखाएगी इन जनप्रतिनिधियों को..अपने हक के लिए कब जागरूक होंगे जनप्रतिनिधियों और कब तक जनप्रतिनिधि अपने स्वार्थ की पूर्ति करते रहेंगे।।