आगंनबाड़ी से लेकर कक्षा 5 तक के बच्चे पढ़ रहे हैं एक कमरे में।
जी हां छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिला का विकासखंड धरमजयगढ़ के ग्राम पंचायत कदम ढोढ़ी में संचालित होने वाला यह अनोखा स्कूल भारत को विश्व गुरु बनने में अहम भूमिका निभा रहा है क्योंकि शिक्षा के क्षेत्र में पठन और पाठन का ऐसा स्वरूप और ऐसा व्यवस्था भारत के अलावा शायद कहीं और देखने को मिल सकेगा इस स्कूल की खासियत यह है कि यहां पर आंगनबाड़ी के बच्चे जो 1 वर्ष से 3 वर्ष तक और प्राइमरी के बच्चे जो 5 वर्ष से 13 वर्ष के सभी एक साथ एक ही कमरे में पढ़ाई करते हैं ऐसी स्थिति में शिक्षा का स्तर समझना कोई परेशानी की बात नहीं है शिक्षक को स्वयं ही नहीं समझ आ रहा है कि किसे क्या पढ़ाया जाए बच्चे भी नहीं समझ पा रहा है कि शिक्षक किसके लिए क्या बोल रहे हैं हालात यह है कि सब एक स्वर में सिर्फ हल्ला करते नजर आता है और शिक्षक अर्धविक्षिप्त सा सब बैठकर तमाशा देखने को मजबूर है ग्राम दर्पण संवाददाता से शिक्षक का चर्चा होने पर पता चला की कक्षा 1 से 5 तक संचालित यह स्कूल का भवन अति जर्जर हालत में अनेकों साल हो गए हैं मगर विभाग को जानकारी होने के बावजूद भी कोई वैकल्पिक व्यवस्था अब तक नहीं हो पाई है इस स्कूल का एक मजेदार बात यह है कि सभी कक्षा एवं सभी विषय के लिए केवल और केवल एक ही शिक्षक नियुक्त है जो स्वयं कहता है कि गोरु और भैंसों को /ओलिया/यानी चरने के लिए छोड़ के बैठा रहता हूं और क्या कर सकता हूं ।
जाने छत्तीसगढ़ के वर्तमान शिक्षा संबंध में।
विश्व बैंक के कार्यकारी निदेशक मंडल ने मध्य भारतीय राज्य छत्तीसगढ़ में सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और प्रसार के लिए 30 करोड़ डॉलर की एक नई ऋण परियोजना की मंजूरी दी है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य राज्य में ग़रीब एवं वंचित तबकों के लगभग 40 लाख छात्रों को लाभ पहुंचाना है। राज्य में लगभग 86 प्रतिशत स्कूल सरकारी स्कूल हैं। प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर नामांकन का स्तर 97 प्रतिशत है लेकिन वरिष्ठ माध्यमिक स्तर पर यह केवल 57.6 प्रतिशत है और लड़कों का नामांकन लड़कियों की तुलना में 10.8 प्रतिशत कम है। इसका कारण यह है कि कई वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों में विज्ञान और वाणिज्य जैसे विषयों की शिक्षा उपलब्ध नहीं है, विज्ञान और गणित जैसे विषयों में प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी है, और प्रयोगशालाओं एवं सुविधाओं जैसे आवश्यक बुनियादी ढांचे का अभाव है। दूर-दराज के इलाकों के छात्रों को भी छात्रावास की समस्या का सामना करना पड़ता है। जबकि लड़कियों को केंद्र सरकार के समग्र शिक्षा कार्यक्रम के तहत आवासीय विद्यालय की सुविधा प्राप्त है, लेकिन लड़कों के लिए ऐसी कोई योजना नहीं है।चॉक (छत्तीसगढ़ एसीलरेटेड लर्निंग फॉर ए नॉलेज इकोनॉमी ऑपरेशन) परियोजना का यह उद्देश्य है कि शिक्षा के हर स्तर पर छात्रों के नामांकन में सुधार लाना है, और साथ ही वरिष्ठ माध्यमिक शिक्षा के स्तर पर विज्ञान और वाणिज्य विषयों की बढ़ती मांग के लिए भी काम करना है। जो स्कूल दूरस्थ इलाकों में स्थित हैं, उनमें पढ़ने वाले पुरुष छात्रों और शिक्षकों के लिए यह परियोजना आवासीय सुविधाएं भी प्रदान करेगी।यह परियोजना लगभग 600 मॉडल कंपोजिट स्कूलों (जहां कक्षा 1 से 12 तक की पढ़ाई होगी) के विकास एवं उसके संचालन में मदद करेगी और वरिष्ठ माध्यमिक स्तर पर विज्ञान और वाणिज्य विषयों की शिक्षा उपलब्ध होगी। इन स्कूलों में प्रशिक्षित शिक्षकों, मज़बूत नेतृत्व और प्रबंधन और सीखने के लिए उपयुक्त शैक्षणिक माहौल के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाएगी। इसके तहत स्कूली इमारतों को जलवायु परिवर्तन के लिहाज़ से अनुकूल बनाने का प्रयास किया जाएगा, जिसके लिए पर्यावरण की दृष्टि से मज़बूत निर्माण अभ्यासों को अपनाया जाएगा।भारत में विश्व बैंक के कंट्री डायरेक्टर ऑगस्ट तानो कुआमे ने बताया, “इस परियोजना के तहत ऐसे सरकारी स्कूलों के नेटवर्क का विस्तार किया जाएगा जहां वरिष्ठ माध्यमिक स्तर पर विज्ञान और वाणिज्य विषयों की शिक्षा उपलब्ध हो। इससे छात्रों को छत्तीसगढ़ में निर्माण और सेवा क्षेत्रों में बढ़ते रोज़गार अवसरों का लाभ उठाने के लिए तैयार किया जा सकेगा।”इस परियोजना के तहत शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाएगा, जिससे शिक्षण माहौल को और बेहतर बनाने और छात्रों के साथ शैक्षणिक संवाद की गुणवत्ता को बढ़ाने में मदद मिलेगी। अनुमान है कि इस परियोजना के तहत 175,000 से अधिक शिक्षकों को प्रशिक्षण सुविधाएं दी जाएंगी। इन स्कूलों में समय-समय पर शिक्षा का मूल्यांकन किया जाएगा और छात्रों की विशिष्ट ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए शिक्षकों को आवश्यक शैक्षणिक संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे ताकि वे प्रत्येक छात्र की शिक्षा पर उचित ध्यान दे सकें।इस परियोजना का नेतृत्व कर रहे कार्तिक पेंटल, शोभना सोसाले और सुप्रीति दुआ ने बताया, “यह परियोजना उन सरकारी कार्यक्रमों का ही विस्तार है, जो कोरोना महामारी के कारण हुए शैक्षणिक नुकसानों से उबरने की दिशा में मज़बूत प्रयास कर रहे हैं, और इसके तहत शिक्षकों और स्कूल प्रबंधकों को व्यावसायिक विकास सहायता दी जाएगी। यह स्कूल-आधारित मूल्यांकन की मौजूदा शिक्षा प्रणाली को और मज़बूत बनाते हुए छात्रों की विशिष्ट ज़रूरतों को केंद्र में रखते हुए शैक्षणिक सहायता प्रदान करेगा।”अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (आईबीआरडी) द्वारा वित्तपोषित 30 करोड़ डॉलर की यह परियोजना प्रोग्राम फॉर रिजल्ट (PforR) जैसे वित्तीय उपकरण का उपयोग करती है, जहां विशिष्ट कार्यक्रमों की उपलब्धियों के अनुसार ऋण को कई किश्तों में दिया जाएगा। इस ऋण अंतिम परिपक्वता अवधि 18.5 साल है, जहां भुगतान के लिए 5 साल की अतिरिक्त समय सीमा दी गई है।
अब ये सारी व्यवस्था जमीनी स्तर पर कितना सार्थक हो पाएगा आने वाला समय ही बता पाएगा।